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मैं ही हूं खुदा

मैं अपनी इबादत खुद ही कर लूं तो क्या बुरा है,

किसी फकीर से सुना था मुझमें भी खुदा रहता है।✓

इतना ख़ाली था अंदरूँ मेरा , कुछ दिनों तो ख़ुदा रहा मुझ में ,✓

हर शख़्स से बे-नियाज़ हो जा फिर सब से ये कह कि मैं ख़ुदा हूँ ।✓

निकले थे दोनों भेस बदल के तो क्या अजब, मैं ढूँडता ख़ुदा को फिरा और ख़ुदा मुझे...✓

मुझ को ख़्वाहिश ही ढूँडने की न थी मुझ में खोया रहा ख़ुदा मेराा✓

ख़ुदा बन रहा था, और कोशिश भी की चलने की ख़ुदाई के राहो पर। जब दम निकलने लगा तो खुद ब खुद ख़ुदा ही नज़र आया।✓

इबादतखानों में क्या ढूंढते हो मुझे, मैं वहाँ भी हूँ, जहाँ तुम गुनाह करते हो।✓

सब लोग अपने अपने ख़ुदाओं को लाए थे, एक हम ही ऐसे थे , कि हमारा खुदा न था।✓

सलीका ही नहीं शायद उसे महसूस करने का, जो कहता है ख़ुदा है तो नजर आना जरूरी है।✓

पूछेगा जो ख़ुदा तो ये कह देंगे हश्र में, हाँ हाँ गुनह किया तिरी रहमत के ज़ोर पर...✓

ज़िंदगी कहते हैं जिस को चार दिन की बात है बस हमेशा रहने वाली इक ख़ुदा की ज़ात है।✓

यूँ अगर घटते रहे इंसाँ तो 'ख़ालिद' देखना इस ज़मीं पर बस ख़ुदा की बस्तियाँ रह जाएँगी ✓

खुदा का ही तो यह फ़रमान है, तभी तो ख़ुदा खुद हर इंसान है✓

 
 
 

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