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हदें

ओरतें तो हदों में खुद बेहद हैं,

फिर ये पुरुष कौन सी हदों की बात करते हैं?

 
 
 

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मैं मिलूं या जो तुमसे मिला था

तो मैं मिलू या जो तुमसे मिला करता था वहीं मिलू जहां मिला करता था, बैसे ही जैसे मिला करता था, काम की बात करू या वही हसी ठिठोली की बातें...

 
 
 
कहानियां

वो इश्क ढूंढती रही कहानियों में, कोई बयान कर गया शायरियों में। जब तक चरित्र में बरवादियां ना हो आदमी कहानी नहीं बनता।

 
 
 
मुझ जैसे

अक्सर उदास चेहरों को में हसा देता हूं, मुझसे मुझ जैसे लोग देखे नहीं जाते।

 
 
 

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