सारी हदें तोड़ लूँ,उसे उतना प्यार दूँ,
फिर भी जितना में कर सकूँ उसे उतना प्यार करता हूँ।
परचित वो भी है मेरे इस रवैये से ,
की कोइ तो है जो उसे बेवजह प्यार करता है,
पर कुछ 'ख्वाइशें दिल की' आज भी दबी हैं,
कुछ को हमने ' मजाक है ' करार दिया
और कुछ को समझा उसने कि मैं मजाक किया करता हूँ,
हाँ बेवजह उसकी परवाह करता हूँ, उसको याद करता हूँ,
जानता हूँ वो खुश है , महफूज है अपने आशियाने में,
फिर भी जानने को फोन कॉल बार बार किया करता हूँ,
उसके मैसेज का बेसब्री से इंतज़ार किया करता हूँ,
जितना मैं कर सकूं उसे उतना प्यार करता हूँ।
सोचता हूँ कि वो भी ये सब महसूस करती है,
क्या वो भी मुझे उतना ही प्यार करती है,
क्या करूं 'खाव्हिशें दिल की' हैं,
शायद उसे समझ न आये,
फिर भी जब जवाब नहीं मिलता,
तो दिल रुखसत न हो इसे समझाता हूँ कि
उसे भी सब पता है ,
बस उसे तेरी तरह पागलपन नही आता,
प्यार तो वो भी उतना ही करता है
शायद उसे जताना नही आता,
'खाव्हिशें दिल की' थोड़ी कम किया कर,
कहकर दिल को हमेशा डाँटता हूँ,
पर कमबख्त कहता यही है कि
जितना मैं कर सकूं उसे उतना प्यार करता हूँ
वो है ही इतना प्यारा, दिल से उसकी बातें बेशुमार करता हूँ।
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